Sunday, December 16, 2018

आवारों सड़कों की मोहब्बत...

उन तंग गलियों में हाथों में हाथ डाले 
जनमती पनपती मोहब्बत देखी है कभी... 

उन आवारा सड़कों पर 
छोटी ऊँगली पकडे चलती ये मोहब्बत... 

उस समाज में जहां सपनों का कोई मोल नहीं, 
ऐसे में एक दूसरे की आखों में 
अपना ख्व़ाब सजाती ये मोहब्बत... 

नाज़ुक सी डोर से जुड़े ये दिल, 
लेकिन आस-पास के कंटीले बाड़ों से 
लड़ती उनकी ये मोहब्बत... 

उनके होठों पर एक कच्ची सी मुस्कान लाने के लिए 
दुनिया भर से नफरत मोल लेती ये मोहब्बत... 

जब लोगों ने अपने दिल में जगह न दी तो, 
सड़कों किनारे बैठे 
आसमां का ख्व़ाब देखती ये मोहब्बत... 

थक जाएँ टहलते हुए तो, 
पार्क के बेचों पर 
बैठने को जगह तलाशती ये मोहब्बत... 

मिलन की उम्मीद जब हताशा में बदल जाए तो 
किसी तन्हा शाम में 
तकिये नम करती ये मोहब्बत... 

इन बंदिशों, रंजिशों से पंगे लेते हुए 
दिल में मासूम एहसास 
संजो कर रखती ये मोहब्बत... 

जब मंजिल लगे धुंधली सी तब भी 
वहाँ तक पहुँचने के 
रास्ते से ही मोहब्बत करती ये मोहब्बत....

जब साथ जवान न होने दिया जाए
तो साथ बूढ़े होने को बेताब ये मोहब्बत...

साल-दर-साल की जुदाई में,
हर ख़त्म होते साल के साथ
अगले साल का इंतज़ार करती ये मोहब्बत...

न किसी महल की ख्वाईश, 
न ही किसी जन्नत की  
हमें मुबारक अपने आवारा सड़कों की ये मोहब्बत...


Wednesday, October 17, 2018

एक बुरे इन्सान का दुःख....

रौशनी चुभ सी रही है आँखों में... लगता है ये रौशनी जिसमें मैं खुद को देख सकूं और मुझे एक उदास सा इंसान दिखे इससे बेहतर है अँधेरे में विलीन हो जाना... ऐसे में जब कोई बेखयाली से ये कह दे कि I Hope you are fine तो जैसे अन्दर ही अन्दर घुटन का एक समंदर ज़ोरदार हिलोरे मारकर मेरी हिम्मत के सारे बाँध तोड़ जाता है...  दुखी होने से ज्यादा मुश्किल है उस दुःख के रहते हुए भी पूरे ज़माने के सामने ख़ुशी का लिबास ओढ़कर चलते रहना... ज़िन्दगी जिसे हम सालों के नम्बर्स के हिसाब से बांटते हैं उसकी आधी दहलीज पर खड़े होकर भी मुझे यहाँ लगता है जैसे I am standing on the square one....

शायद मैं उदास हूँ, शायद दुखी या फिर शायद डिप्रेस्ड.. इन कई सारे शायद के बीच चौराहे पे खड़े होकर मन करता है शायद कोई तूफ़ान, बवंडर, उड़ा ही ले जाए मुझे... खुद से गुमशुदा हो जाने को ही शायद मौत कहते होंगे, या फिर शायद ज़िन्दगी जब ज़र्रे-ज़र्रे में बिखर जाए तब... लेकिन ज़िन्दगी और मौत के बीच हमेशा एक कालकोठरी होती है, मौन की कालकोठरी... जब हम खामोश हो जाते हैं, इतने खामोश कि अपने गम, सुख, क्रोध हर नुक्कड़ पर बस मौन का दामन थामे आगे निकल जाना चाहते हैं... जब शब्दों का कोई औचित्य नज़र न आता हो... 


मौन एक खालीपन सा छोड़े दे रहा है चारों ओर, मेरे अंदर एक ऐसा सवाल कि लगता है अगर अपने आप को अभिव्यक्त करने से कोई खुद रोक ले तो कितने दिन जीवित रह पाएगा... शब्द उठते हैं और बिना पूर्ण हुए अंदर ही अंदर विलीन हो जाते हैं...  जबकि मेरी ज़िंदगी का ताना बाना शब्दों के ही इर्द गिर्द रहा हो हमेशा, कम से कम 18 सालों से तो ज़रूर, ऐसे में अचानक से किसी से कुछ न कहने और कुछ न लिखने के लिए खुद को मना रहा हूँ... शरीर खंडित सा हुआ जाता है, दिमाग के नसें फटी सी जा रही हैं... अगर मेरे शब्द कभी मेरी पहचान रहे हों तो आज वही शब्द मेरे सबसे बड़े दुश्मन मालूम पड़ते हैं... 

दुनिया भर की सारी खामियों का पुलिंदा समेटे चुपचाप ही बैठना चाहता हूँ कुछ वक़्त और... किसी से कोई शिकायत नहीं, बस एक मौन ही बेहतर है.... शायद कुछ दिनों के लिए या फिर हमेशा हमेशा के लिए... 

किसी के नज़र में बुरा हो जाने में कोई बुराई नहीं, पर इतना बुरा बन जाना कि इस वजह से वो किसी अपने से दूर होने लगे... इससे बेहतर है, खामोश हो जाना चाहे जैसे भी हो... वैसे भी बुरे इंसानों के दुःख मायने नहीं रखते...

मैं एक बुरा इंसान हूँ, इंतना बुरा कि सबका अच्छा सोचता हूँ... 

Saturday, October 6, 2018

ये माँ भी मेरी न जाने कितने कमाल करती है...

ये माँ भी मेरी न जाने कितने कमाल करती है,
में ठीक तो हूँ न, हर रोज़ यही सवाल करती है

शाम हो गयी है देखो, अंधेरा भी हो गया है
आँचल में समेटकर वो मुझको, हिम्मत बहाल करती है

माँ भूखी है. व्रत रखा उसने मेरी लम्बी उम्र के लिए,
माँ की भूख से मिली ये उम्र मुझसे ही सवाल करती है

मैंने सजाया है दस्तरखान जाने कितने पकवानों से
पर जब तक माँ न खिला दे, ये भूख बेहाल करती है...

ये माँ भी मेरी न जाने कितने कमाल करती है,
में ठीक तो हूँ न, हर रोज़ यही सवाल करती है...


Friday, September 7, 2018

तुम प्यार करोगी न मुझसे

तुम प्यार करोगी न मुझसे,

तब, जब मैं थक के उदास बैठ जाऊँगा
तब, जब दुनिया मुझपे हंस दिया करेगी
तब, जब अँधेरा होगा हर तरफ
तब, जब हर शाम धुंधलके में भटकूँगा मैं उदास

तब एक उम्मीद का दिया जगाये
तुम प्यार करोगी न मुझसे...

तब, जब मुझे दूर तक तन्हाई का रेगिस्तान दिखाई दे 
तब, जब मेरे कदम लड़खड़ाएं इस रेत की जलन से 
तब, जब मैं मृगतृष्णा के भंवर में फंसा हूँ 
तब, जब इश्क़ की प्यास से गला सूख रहा हो मेरा 

तब अपनी मुस्कान ओस की बूंदों में भिगोकर 
तुम प्यार करोगी न मुझसे...

तब, जब ये समाज स्वीकार नहीं करे इस रिश्ते को
तब, जब प्रेम एक गुनाह मान लिया जाए
तब, जब सजा मिले हमें एक दूसरे के साथ की
तब, जब मुँह फेर लेने का दिल करे इस दुनिया से

तब इस साँस से लेकर अंतिम साँस तक
तुम प्यार करोगी न मुझसे... 

Sunday, September 2, 2018

बहुत धीमी बहती है मोहब्बत लोगों की रगों में...

बहुत धीमी बहती है मोहब्बत लोगों की रगों में,
नफरत से कहीं धीमी...

नफरत इतनी कि
सड़क पर अपनी गाड़ी की
हलकी सी खरोंच पर भी
हो जाएँ मरने-मारने पर अमादा,

और मोहब्बत इतनी भी नहीं कि
अपने माँ-बाप को लगा सकें
अपने सीने से
और कह सकें शुक्रिया...

बहुत धीमी बहती है मोहब्बत लोगों की रगों में,
नफरत से कहीं धीमी...

मोहब्बत सिगरेट की फ़िल्टर सी है,
नफरत का सारा धुंआ खुद से होकर गुजारती है
सारी नफरत ले चुकने के बाद
हम उस मोहब्बत को ही फेक देते हैं
और कुचल देते हैं
अपनी जूतों की हील से
और नफरत !!
वो तो समा चुकी है हमारे सीने में टार बनके...

बहुत धीमी बहती है मोहब्बत लोगों की रगों में,
नफरत से कहीं धीमी...

Thursday, March 22, 2018

बस एक बेहतर कल की तलाश में...

मैं घिसता हूँ खुद को हर रोज,
खुद को खुद से आगे निकालना चाहता हूँ,
ये रगड़ एक आग पैदा करती है
मैं अकेला बैठ कर जल जाता हूँ हर शाम उसमें...
थक कर, घायल होकर
सवाल फिर खुद से ही करता हूँ
कि क्या ज़रुरत है इस संघर्ष की
दिल भी कन्धा उचका कर दे देता है जवाब,
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

मैं निराश होता हूँ क्यूंकि
मैं वो नहीं बन पाया
जो शायद बनना ज़रूरी था मुझे,
फिर भी मैं हर रोज लड़ता हूँ
निराशा को दरकिनार करता हूँ,
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

मेरे पास हर उस कल के सपने हैं,
जो कल नहीं आया अब तक
पता नहीं वो कल कभी आएगा भी या नहीं,
मेरे तले ज़मीं भी रहेगी या नहीं तब तक...

मेरा आज मुझे धिक्कारता है
क्यूंकि मेरा आज कभी आने वाला कल था
जिसकी फ़िक्र मैंने कभी नहीं की
और अब मैं अपना आज गंवा बैठा हूँ
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

ज़िन्दगी से कई सवाल हैं मेरे,
मैं नोटबुक में लिखता रहता हूँ
जो कभी उस दुनिया में कभी सामना हुआ तो
पूछ पाऊं उन सवालों को
फिलहाल तो आज बस मैं सवाल ही लिखता जा रहा हूँ
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

लगता है कि शायद कभी
किसी मोड़ पर गर
पर्दा गिराना हो इस ज़िन्दगी के नाटक से
तो क्या वो भी कर लूंगा मैं,
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

Friday, February 9, 2018

कसक...

कभी-कभी बैठे बैठे अचानक से हम दूर कहीं पीछे छूट चुकी याद के सिरे टटोल बैठते हैं... आज ऑफिस से वापस आते हुए कोई पुराना सा लम्हा आकर मेरी आखों के सामने पसर गया... 

इस खुशनुमा मौसम में अचानक से कसक सी उठी, तुमसे बात न कर पाने की कसक... मुझे नहीं पता कि ऐसा क्या है जो वो सुकून नहीं भूल पाता जो हर उस इंसान के साथ रह के मिलता जिसे मैं पसंद करता हूँ. मैं अपनी ज़िन्दगी के सबसे प्यार भरे दौर में हूँ और मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि मैं बहुत खुश हूँ इन दिनों... मुझे यकीन है जैसे मैं तुम्हें खुश देखकर खुश होता हूँ, तुम भी ज़रूर होगी... याद है तुमने एक बार कहा था "आप जहाँ भी, जिसके साथ भी रहेंगे हमेशा खुश रहेंगे और उसे भी रखेंगे जिसको ये खुशनसीबी हासिल होगी..." मैं शायद उस वक़्त नादान था बहुत, कभी सोचा नहीं था कि ये बात आज 16 सालों बाद भी मुझे याद आ जायेगी... कितनी सच थी ये बात, आज मैं सच में बहुत खुश हूँ और यकीन है उस इंसान को भी वो सारी ख़ुशी दे रहा हूँ जिसकी उसने तमन्ना की हो... सच कहूँ तो तुम्हारे यूँ अचानक से चले जाने का असली दुःख ये है कि मैंने एक बेहतरीन दोस्त भी खो दिया, वो दोस्त जिसके पास मेरी हर बकवास सुनने का वक़्त था और मेरी हर गलती सुधारने का भी... 

तुम्हारी उस "हर कोई धोखेबाज है इस दुनिया में.." वाली बात पर जब मैंने कहा कि मैंने तो कभी किसी को धोखा नहीं दिया कभी, तो तुमने कहा था.. "आप तो यूनिक टाइप हैं, आपको तो यही नहीं पता कि धोखा कैसे देते हैं, आप क्या धोखा दीजियेगा किसी को..." तुमने ये भी तो कहा था कि "अपने तरह का मत खोजिएगा कभी, पता नहीं शायद कभी मिले ही नहीं..." मैं आज तुमको बताना चाहता हूँ कि ऐसा कोई मिल गया है मुझे... उसे भी नहीं आता है किसी को धोखा देना... 

मैं फिर से उस इंसान से मिलना चाहता हूँ जिससे 17 साल पहले मिला था, बस इसलिए कि कुछ चीजों को रीसेट कर सकूं... बस इतना ही कि हम कम से कम ऐसे तो बने रहें कि आज तुमको बता सकूँ कि मैं खुश हूँ... 

मालूम है, ऐसा कुछ अब नहीं हो सकता... 
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