Friday, February 17, 2012

प्यार एक बुलबुला है पानी का...

        प्यार, कब क्या और कैसे... इन तीनो सवालों के बीच उलझ कर न जाने कितने ही सोचें भटकती रहती है... प्यार को कई कई बार परिभाषाओं में समेटने की कोशिश करता हूँ, लेकिन हर बार कुछ नया जोड़ने का दिल करता है... आखिर अपने इन बेसलीके शब्दों के बंधन में कैसे बाँध सकता है कोई इस उफनते-उभरते से सागर को... प्यार आज़ाद है, इसको किसी सोच के दायरे में नहीं बाँधा जा सकता... प्यार असीम है, अनंत है.... इस आसमान से लेकर उस आसमान तक...प्यार की छुअन मुझे मेरी सूनी सी बंद खिड़की पर लटके विंड-चाईम की तरह लगती है, जो हर शाम तुम्हारी बातों की आवाज़ सुनकर गुनगुना भर देता है.. प्यार कभी शिकायत नहीं करता, वो तो बस इंतज़ार करना भर जानता है.. भले ही उस इंतज़ार की गिरहें हर सुबह मकड़ी के जालों पर पड़ी ओस की बूंदों तरह गायब होती जाती हैं, लेकिन प्यार के संगीत में डूबा ये मन भी कितना बेबस है न.. फिर उसी शिद्दत से वक़्त की झोली से चुरायी गयी उन अँधेरी शामों में सपनों के जाले बुनता नज़र आता है... प्यार शर्तें नहीं जानता, आखिर वो प्यार ही क्या होगा जो शर्तों पर किया जाए... प्यार कैद नहीं होना चाहता, वो तो आज़ाद होकर बहना जानता है बस... एक दिल से दूसरे दिल के बीच एक साफ़ स्वच्छ निर्मल झरने सा... इसका यूँ ही बहते रहना ही सुकुन देता है इसे... बीत गए और आने वाले कल से बेखबर, बस आज के बीच... प्यार हर रोज़ एक नयी बात सिखाता है, जाने कितने पन्नों में सिमटी एक किताब की तरह... बीच-बीच में कुछ मुड़े पन्ने भी दिखते हैं, जिसे हम जैसा ही कोई पढ़ गया था कभी... मैं भी कहीं कहीं बुकमार्क लगा देना चाहता हूँ ताकि सनद रहे कि ये भी सीखा था कभी...  अजीब ही है प्यार, हर घर की छत के कोने में उगे उस पीपल के पेड़ जैसा, जो हमारे चाहते-न-चाहते हुए भी उग आता है... फिर हम लाख कोशिश कर लें उसे हटा नहीं पाते, क्यूंकि कितनी ही जगह तो हमारा पहुंचना मुमकिन ही नहीं होता... इसी बात पर पूजा जी कहती हैं " प्रेम नागफनी सरीखा है... ड्राईंग रूम के किसी कोने में उपेक्षित पड़ा रहेगा...पानी न दो, खाना न दो, ध्यान न दो...'आई डोंट केयर' से बेपरवाह...चुपचाप बढ़ता रहता है... "
         
कितनी ही बार ख्याल आया, मन में बहते प्यार के इस दरिया को किसी पुरानी सोच की दीवार की कील पर टांग दूं, इस उम्मीद में कि शायद उस सोच में जंग लग जाए लेकिन ये दरिया इतने मीठे पानी से बना है कि वो सोच और भी ज्यादा पनपती जाती है...
          और भी बहुत कुछ है कहने को लेकिन क्या क्या कहूं, बस एक बात जो हमेशा सुनता आया हूँ कि सिर्फ पाने का ही नाम प्यार नहीं, बदले में एक उदाहरण राधा-कृष्ण का देते हैं लोग... तो बस इतना ही है कहने को कि प्यार तो वो भी अधूरा ही था क्यूंकि मैंने देखा है कि कान्हा आज भी रोता है कभी-कभी राधा की याद में...

Sunday, February 12, 2012

माँ ...वहां तो बड़ा खतरनाक जंगल है ...

          पुरानी बात है...  एक लड़का था, बहुत brilliant था.. सारी जिंदगी फर्स्ट आया... हमेशा 100 % score किया science में... अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं... सो उसका भी selection हो गया IIT CHENNAI में.. वहां से B Tech किया... वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया... वहां से आगे की पढ़ाई पूरी की.. M Tech वगैरा कुछ किया होगा... फिर वहां university of california से MBA किया.. अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है... सुनते हैं कि वहां भी हमेशा टॉप ही किया... वहीं नौकरी करने लगा... बताया जाता है कि 5 बेडरूम घर था उसके पास... शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत  लड़की से हुई थी... ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में... अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इस से आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती... एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में... पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए.... अमेरिका में settle हो गए... मोटी तनख्वाह की नौकरी... बीवी बच्चे... सुख ही सुख... इसके बाद हीरो हेरोइने सुखपूर्वक वहां की साफ़ सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे...THE END ...
           अब एक दोस्त हैं हमारे... भाई नीरज जाट जी... एक नंबर के घुमक्कड़ हैं... घर कम रहते हैं  सफ़र में ज्यादा रहते हैं... ऐसी ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही...4 -6 दिन पहाड़ों पर घूमना, trekking करना उनके लिए आम बात है...ऐसे ऐसे दुर्गम स्थानों पर जाते है...फिर आ के किस्से सुनाते हैं.. ब्लॉग लिखते  हैं ... उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है... न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना ( सफ़र में )... फिर भी कोई टेंशन नहीं चल पड़े  घूमने... बैग कंधे पर लाद  के... मेरी बीवी कहती है अक्सर... कि एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए... नीरज जाट जैसे... जो न खुद घर रहता है... न दूसरों को रहने देता  है .. बहला फुसला के ले जाता है अपने साथ.. पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुन के रश्क होता है... कितना rough n tough है यार ये आदमी... कितना जीवट है इसमें... बड़ी सख्त जान है...
            आइये अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा  आ जाते हैं... तो आप उस इंजिनियर लड़के का क्या future देखते हैं लाइफ में  ???? सब बढ़िया ही दीखता  है.... पर नहीं.. आज से तीन साल पहले उन्होंने वहां अमेरिका में.... सपरिवार आत्महत्या कर ली... अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली..... what went wrong ????????? आखिर ऐसा क्या हुआ... गड़बड़  कहाँ  हुई... ये कदम उठाने से पहले उन्होंने बाकायदा अपनी wife से discuss किय .. फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा... और उसमें  बाकायदा justify किया अपने इस कदम को... और यहाँ तक लिखा की यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों  में ... उनके इस केस को और उस suicide नोट को california institute of clinical psychology ने study किया है... what went wrong.... हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी में उनकी नौकरी चली गयी... बहुत दिन खाली बैठे रहे ... नौकरियां ढूंढते रहे... फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए फिर भी जब नौकरी न मिली... मकान की किश्त जब टूट गयी... तो सड़क पे आने की नौबत आ गयी... कुछ दिन किसी petrol pump पे तेल भरा बताते हैं ... साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली ख़ुशी ख़ुशी... और वो बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गयी... ख़ुशी ख़ुशी...जी हाँ लिखा है उन्होंने.. कि हम सब लोग बहुत खुश हैं...कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा... सब कष्ट ख़त्म हो जायेंगे... इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने..... this man was programmed for success but he was not trained,how to handle failure...यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए  ..........
                आइये ज़रा उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते है.... बहुत तेज़  था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया .... ऐसे बहुत से parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते है कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये ....कोई गलती न हो उस से... गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा  पाप कर दिया... और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं... हमेशा फर्स्ट आने के लिए.. फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद ,घूमना फिरना ,लड़ाई झगडा ,मार पीट  ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को... 12 th  कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर .वहां से निकले तो MBA . और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी ....अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी  .........य्यय्य्ये बड़े बड़े targets... कमबख्त ये दुनिया स्स्सस्साली...  बड़ी कठोर है.... और ये ज़िदगी.. अलग से इम्तहान लेती है.. आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब  नहीं उसे... वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता....ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है.. और सवाल साले ...सब out ऑफ़ syllabus होते हैं.... टेढ़े मेढ़े ... ऊट पटाँग  ... और रोज़ इम्तहान लेती है ...कोई डेट sheet नहीं ......
         एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे .....दिल्ली में... mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहां..... तभी एक लड़की ....रही होगी यही कोई 7 -8 साल की अचानक जोर जोर से रोने लगी......हम लोग दौड़े ....क्या हुआ भैया... देखा तो वो लड़की गिर गयी थी. वहां ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में वो गीली मिटटी लग  गयी थी... और थोड़ी उसकी frock में भी ........सो वो जार जार रो रही थी ...खैर हमने उसके हाथ धोये ....और ये बताया की कुछ नहीं हुआ बेटा ...ये देखो.....धुल गयी मिटटी .......खैर साहब थोड़ी देर में उसकी माँ आ गयी... high heels पहन के .. और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई......की आप लोग ठीक  से काम  नहीं करते हो ....लापरवाही करते हो ... कैसे गिर गया बच्चा ..........अगर कुछ हो जाता तो  ????????    सचमुच इतना बड़ा हादसा  ...भगवान् न करे  किसी के साथ  हो जीवन में ........ एक और आँखों देखी घटना है मेरी .. कैसे माँ बाप अपने बच्चों को spoil करते हैं .. हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे .. बच्चे स्कूल बस से आते थे .. ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हलकी सी चोट लग गयी  .....यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट .... अब वो बच्चा जोर जोर से रोने लगा .....बस यूँ समझ लीजे चिंघाड़ चिंघाड़ के .....क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे ............खैर मामूली सी बात थी ......हमने उसे फर्स्ट ऐड दे के बैठा  दिया  .... तभी  भैया ....यही  कोई 10 मिनट  बीते  होंगे  .. उस   बच्चे के माँ बाप पहुँच  गए स्कूल .... और फिर वहां जो रोआ  राट मची .... वो बच्चा जितनी जोर से रोता ...उसकी माँ उस से ज्यादा जोर से चिंघाड़ती... और उसका बाप जोर जोर से चिल्ला रहा था ....पागलों की तरह ... मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है ....आप लोग अभी तह हॉस्पिटल ले के नहीं गए.......अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है ... मेरा वो दोस्त जो वहां PTI था उसके साथ हम एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में गए.. अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए ... वहां पर भी उस लड़के का बाप CT Scan ...Plastic surgery न जाने क्या क्या बक रहा था ... पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज  दिया .... एक और किस्सा उसी स्कूल का ...एक श्रीमान जी सुबह सुबह आ के लड़ रहे थे ....क्या हुआ भैया .. स्कूल बस नहीं आयी ..... हमें आना पड़ा छोड़ने ... बाद में पता चला श्रीमान जी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर .... उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था ....और लड़का उनका 10 साल का था ...
             क्या बनाना चाहते हैं आज कल के माँ बाप अपने बच्चों को ... ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएंगे ... आज से लगभग 15 साल पहले ..मेरा बड़ा बेटा 4 -5 साल का था ... अपने खेत पे जा रहे थे हम ...बरसात का season था ....धान के खेतों में पानी भरा थे ......मेरे बेटे ने मुझे कहा..... पापा ........     मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा ...पैदल चलो ... और वो चलने लगा ...और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया .....कपडे सब कीचड में सन गए... अब वो रोने  लगा ....मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा ...उठो .....वो वहीं बैठा बैठा रो रहा था ....उसने मेरी तरफ हाथ बढाए .....मैंने कहा ..अरे पहले उठो तो ........और वो उठ खड़ा हुआ ... मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया .... हम फिर चल पड़े ....थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया .....पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी .....उसने सिर्फ इतना ही कहा ...अर्र्रे ... और हम सब हंस दिए .....वो भी हंसने लगा .... और फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया ..... मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप बेटा बीसों बार उस खेत पे गए होंगे .. वो उसके बाद वहां से आते जाते कभी नहीं गिरा ..
             कल मैं नीरज  जाट  जी की  करेरी झील की  trekking  वाली पोस्ट पढ़ रहा था ..... 4 दिन उस सुनसान बियाबान में ...जिसका रास्ता तक नहीं पता ...इतनी बारिश और ओला वृष्टि में ... ऊपर से ले कर नीचे तक भीगे ......भूखे प्यासे ........न रहने का ठिकाना न सोने का ......उस कीचड भरे मंदिर  के कमरे में .....उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में रात बिता के भी ........कितने खुश थे ......इतना संघर्ष शील आदमी ...क्या जीवन में कभी हार मानेगा ..........काश कार्तिक राजाराम ........जी हाँ यही नाम था उस लड़के का .......उसे भी बचपन में गिरने की ...गिर गिर के उठने की ......बार बार हारने की और हार के बार बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती ..... कठोपनिषद  में एक मंत्र है ......उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ..... उठो जागो .......और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो .. शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल ....इतना सुकुमार मत बनाइये की वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त न कर सकें ........एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था ....एक मेमना अपने माँ से दूर निकल गया ...वहां पहले तो भैंसों के झुण्ड में घिर गया .......उनको पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह ...अभी थोडा ही आगे बढ़ा था की एक सियार उसकी तरफ झपटा .....किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई ....तो सामने से भेड़िये आते दिखे .... बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका  रहा ....किसी तरह माँ के पास  पहुंचा  तो बोला .....माँ ...वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है .... maa ... there is a jgungle out there .... इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिये ....

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लेखक :-
अजित सिंह तैमूर,
वाराणसी, उत्तर प्रदेश..
ब्लॉग :- अकेला चना

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Friday, February 3, 2012

मौत के साथ सपने नहीं मरते...

          वो एक बेचैन सी सुबह थी, आस पास लोगों की भीड़... कई सारे अपने से चेहरे, जैसे सभी से एक न एक बार मिल चुका हूँ कहीं, बस अपने आप को नहीं देख पा रहा था मैं, फिर देखा तो कोई लेटा हुआ था सफ़ेद कपड़ों में लिपटा, शक्ल कुछ जानी पहचानी सी... आखें अजीब बेजान सी, हलकी हलकी नम, जैसे आंसू की कोई बूँद कैद हो गयी हो पलकों में, जैसे अभी टपक पड़ेंगी... चेहरे पर अजीब सी सफ़ेद हो चुकी मायूसी, जैसे कोई बहता दरिया अचानक से बर्फ हो गया हो... उस ठन्डे हो चुके से शरीर को घेरे कुछ लोगों की आँखों से बेरंग पानी टपक रहा है, कुछ के चेहरे पर सुकून कि चलो अच्छा ही हुआ... ठहाकों की आवाज़ भी सुनी थी मैंने, मेरी मौत पर वो हँसते रहे, वो मेरे सपने थे जो मेरी बेचारगी को घूर रहे थे... उनकी वो नज़र जैसे भेद रही थीं मेरे उस बेजान पड़े शरीर को...
          आखिर मेरे ही सपनो ने मुझे मार दिया, सपनो की ये बेरुखी ... आज मिटटी हो चुके मेरे शरीर की अर्थी को अंजाम देने आये हैं... उन्हें खबर है कि इन बेजान सुर्ख पड़ी आखों में आज भी कई सपने तड़प रहे हैं, वो मरे नहीं वो तो बस इंतज़ार कर रहे हैं, मेरे जल जाने का.. शायद ये उन सपनों की अग्निपरीक्षा का वक़्त है, मुझे यकीन है वो जीत जायेंगे.... मेरा शरीर तो कब का मर चुका है, वक़्त के तेज़ हवा के थपेड़े कब का बहा ले गए हैं उसे, इस बेगानी सी दुनिया की तेज़ धूप में जल चुकी है ये आत्मा भी,  लेकिन ये आग इन सपनो को जला नहीं सकती... वो सपने तो अज़र हैं, अमर हैं... वो सपने फिर मेरे साथ आयेंगे, आखिर वो सपने ही तो मेरे अपने हैं जो हर रात मेरे चाहते-न चाहते हुए भी हमेशा मेरे साथ रहे.... मेरे हमदम की तरह, मेरे हमसफ़र की तरह... इस बहती ज़िन्दगी के साथ वो भी बहते रहे, बिना रुके बिना थके.... आज उस मनहूस सी बेचैनी के बीच जाने कितनी अतृप्त इच्छाएं शोर मचा रहीं हैं, उस गुमनाम बसंत का इंतज़ार कर रही हैं, जब सपनों का फिर से इन आँखों के अंजुमन में आना होगा...
        जाने कब वो अगला जन्म होगा, सपने फिर आयेंगे और मेरे मन में फिर से जलाएंगे धीमे-धीमे खुद को पूरा करने की आग... मुझे यकीन है वो सपने फिर आयेंगे क्यूंकि मौत के साथ सपने नहीं मरते, बस सो जाते हैं थोड़ी देर के लिए क्यूंकि उन्हें फिर से आना होता है लौट कर इन्हीं आखों में ...

Wednesday, February 1, 2012

आत्महत्या, एक रास्ता भर है आजादी का...

        आत्महत्या को, खुद को खुद से आज़ाद करने की एक पहल के रूप में देखा जा सकता है... क्यूंकि इंसान कभी न कभी हार ही जाता है... कहते हैं ज़िन्दगी खुदा की दी गई खुबसूरत नेमत है. लेकिन जब इसकी ख़ूबसूरती से ही नफरत होने लगे तो.... आत्महत्या करने वालों को सब कायर कह देते हैं, लेकिन कभी गौर से सोचा तो जाना कि आत्महत्या करना भी अपने आप में कितनी हिम्मत से भरा फैसला है.... आखिर इस ज़िन्दगी से किसे लगाव नहीं होता, सभी इसे दिल से जीना चाहते हैं, इसकी धुन में मस्त होकर साथ साथ गाना चाहते हैं.... लेकिन जब ये मस्तानी धुन कानफाड़ू शोर में तब्दील हो जाए, तो सारे बंधन तोड़ कर बस आज़ाद होने का दिल करता है.... हालाँकि ये आजादी कभी भी किसी आशावादी इंसान को रास नहीं आएगी, लेकिन कभी न कभी जैसे हर चीज़ से नफरत होने लगती है... इंसान हर किसी से नफरत करके उबर सकता है, नए सिरे से जी सकता है... लेकिन अपने आप से जब नफरत होने लगे तो फिर और कुछ समझ नहीं आता... मैं आत्महत्या को किसी भी तौर पर सही नहीं ठहराना चाहता, बस उन सभी लोगों से सहानुभूति है जिन्होंने कई कठिन परिस्थितियों में अपनी ज़िन्दगी को ख़त्म करने का फैसला लिया... पता नहीं क्यूँ ये बात बहुत STRONGLY कहना चाहता हूँ कि वो कायर नहीं थे, बस उन्हें ज़िन्दगी जीने का हुनर नहीं आया... वो थक गए, अपने आप से, अपने सपनों से, अपनी ज़िन्दगी से....
           मुझे नहीं पता कि आपमें से कितने लोगों के जहन में कुछ लम्हों के लिए ही सही लेकिन कभी अपने आप को ख़त्म करने का ख्याल आया होगा, फिर भी मुझे लगता है कि शायद वो लोग अकेले नहीं हैं जो खुद अपने आप की नफरत के शिकार हो गए... मुझे डर है अपने आप से बढती हुई ये नफरत कहीं अपनी ही जान लेने पर मजबूर न कर एक दिन...
            इस पोस्ट पर आने वाली टिप्पणियों के प्रकार का पूर्वाभास है मुझे, इसलिए कृपया सहानुभूति या आशावादी बनने की प्रेरणा से भरी टिपण्णी न करें ... आपने पढ़ा आपका शुक्रिया...
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